Shiv Parvati Vivah : महाशिवरात्रि हिन्दू धर्म का अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व है। यह केवल एक व्रत अथवा धार्मिक अनुष्ठान ही नहीं है, बल्कि यह दिन भगवान शिव और माता पार्वती के दिव्य मिलन का स्मरण कराता है। माना जाता है कि फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को ही भगवान शिव का विवाह माता पार्वती के साथ सम्पन्न हुआ था। इसलिए इस दिन व्रत और पूजा का विशेष महत्व है।
श्रद्धालु इस दिन उपवास रखते हैं, शिवलिंग का पूजन करते हैं, रात्रि जागरण करते हैं और Shiv Parvati Vivah की कथा का पाठ करते हैं। यह कथा केवल एक धार्मिक प्रसंग ही नहीं, बल्कि प्रेम, तपस्या, त्याग और सत्य की विजय का अद्भुत संदेश देती है।
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विवाह से पूर्व की पृष्ठभूमि
भगवान शिव ने अपने जीवन में सबसे पहले सती से विवाह किया था। परंतु पिता दक्ष द्वारा शिव का अपमान सह न पाने के कारण सती ने आत्मोत्सर्ग कर दिया। इससे शिवजी गहन तपस्या में लीन हो गए और वे संसार से लगभग विरक्त हो गए।
इधर तारकासुर नामक असुर का उत्पात बहुत बढ़ गया था। उसे वरदान मिला था कि उसका वध केवल शिवजी के पुत्र के हाथों ही हो सकता है। देवताओं ने सोचा कि शिवजी का पुनः विवाह हो और उनसे एक ऐसा तेजस्वी पुत्र उत्पन्न हो, जो तारकासुर का अंत कर सके।
उधर माता सती ने हिमवन और मैना के घर जन्म लेकर पार्वती रूप में पुनः अवतार लिया था। पार्वती जी शिवजी की अनन्य भक्ति और तपस्या में लीन हो गईं। उन्होंने कठिन तपस्या करके भोलेनाथ को प्रसन्न किया। इस भक्ति और प्रेम ने महादेव के हृदय को पिघला दिया और अंत में शिवजी ने पार्वती जी को अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार कर लिया।
विवाह की तैयारी और बारात
जब भगवान शिव विवाह के लिए हिमाचल के घर जाने लगे, तब उनकी बारात देखने लायक थी। क्योंकि शिवजी केवल देवताओं के ही नहीं, बल्कि समस्त प्राणियों के, सभी जीवों के देवता—”पशुपति” हैं। यही कारण था कि उनकी बारात में देवता, ऋषि-मुनि, गंधर्व, यक्ष, भूत-प्रेत, दानव, असुर, पशु-पक्षी और यहां तक कि कीड़े-मकोड़े तक शामिल थे।
शिवजी का श्रृंगार भी अनोखा था। वे जटाओं में गंगाजल धारण किए हुए, गले में नागमणि के हार और शरीर पर भस्म लगाए हुए थे। भूत-प्रेत उनके साथी थे और डमरू-शंख और ढोल नगाड़ों की ध्वनि से नगर गूंज उठा। यह दृश्य देखकर पर्वतराज हिमालय की पत्नी मैना देवी घबरा गईं। उन्होंने पार्वती का विवाह ऐसे “भयानक” वर से करने से इन्कार कर दिया।
तभी, माता पार्वती ने विनम्रता से प्रभु से निवेदन किया कि वे विवाह हेतु सद्गृहस्थ रूप धारण करें। माता की प्रार्थना सुनकर शिवजी ने स्वयं को दैवीय रूप में सजाया। दिव्य वस्त्र, चंदन, आभूषण और पुष्पमालाओं से अलंकृत होकर जब वे पार्वती के सामने आए तो सबके हृदय में श्रद्धा और आनंद से लहर दौड़ गई।
वंशावली और नारद की बुद्धिमता
विवाह के समय परंपरा अनुसार वर-वधू की वंशावली बताना आवश्यक था। पार्वती की वंशावली बड़े गर्व और उल्लास के साथ सुनाई गई। लेकिन जब शिवजी की वंशावली पूछी गई तो वहां उपस्थित देवता मौन हो गए।
तब नारदजी ने स्थिति संभालते हुए कहा — “शंकर तो स्वयं परब्रह्म हैं। वे निराकार, अनंत और अजन्मा हैं। जिनका न आदि है, न अंत है, उनका वंश-वृक्ष कैसे बताया जा सकता है? वे सम्पूर्ण ब्रह्मांड के जनक हैं, और आज पार्वती की कठोर तपस्या और भक्ति के कारण ही वे इस विवाह में सहभागी हुए हैं।”
नारदजी के इन वचनों ने सभी को संतुष्ट किया और विवाह की प्रक्रिया आगे बढ़ी।
Shiv Parvati Vivah का शुभ क्षण
विधिविधान के अनुसार कन्यादान हुआ। हिमालय ने हाथ जोड़कर कहा—
“महादेव! मैं अपनी पुत्री पार्वती का आपसे विवाह करता हूं, इसे अपनी अर्धांगिनी बनाकर स्वीकार করুন।”
यह सुनकर भगवान शिव ने पार्वती का हाथ अपने हाथ में लिया और वेदमंत्रों के बीच अग्नि के चारों ओर फेरे लिए। देवता, ऋषि, गंधर्व, अप्सराएं और संपूर्ण लोक इस दिव्य युगल को देखकर आनंद से झूम उठे।
स्वर्ग और पृथ्वी पर मंगलध्वनियां गूंजने लगीं। गंधर्वों ने गीत गाए, अप्सराओं ने नृत्य किया और सबके मन में अद्भुत प्रसन्नता का संचार हुआ।
विवाह का महत्त्व और संदेश
यह विवाह केवल शिव-पार्वती का व्यक्तिगत मिलन नहीं था, बल्कि यह संपूर्ण जगत के कल्याण की भूमिका बन गया। इस पावन संयोग से ही आगे चलकर भगवान कार्तिकेय का जन्म हुआ, जिन्होंने तारकासुर का वध करके देवताओं और मनुष्यों को उसके आतंक से मुक्त किया।
शिव और शक्ति का यह पवित्र मिलन हमें यह संदेश देता है कि ईश्वर को पाने के लिए केवल कर्म या भक्ति ही नहीं, बल्कि सच्चे संकल्प और धैर्य की आवश्यकता है। पार्वती जी ने जिस अडिग प्रेम और साधना से महादेव को पाया, वह आज भी स्त्रियों के लिए आदर्श है। वहीं, शिवजी का पार्वती जी को स्वीकार करना यह दर्शाता है कि सच्चा प्रेम सभी रूपों, संस्कारों और रीति-रिवाजों से परे है।
महाशिवरात्रि और वैवाहिक जीवन में महत्व
मान्यता है कि जो दंपति महाशिवरात्रि के दिन उपवास और पूजा साथ में करते हैं और Shiv Parvati Vivah कथा का श्रवण करते हैं, उनके वैवाहिक जीवन में मधुरता बनी रहती है। पति-पत्नी के बीच आपसी विश्वास, प्रेम और सम्मान बढ़ता है। साथ ही, यह व्रत संतान सुख, सौभाग्य और परिवार की सुख-शांति प्रदान करने वाला भी माना जाता है।
उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित त्रियुगीनारायण में यह पावन विवाह संपन्न हुआ, जहां आज भी एक मंदिर इस दिव्य घटना का साक्षी है। कहा जाता है कि यहां की अग्नि तीन युगों से निरंतर प्रज्वलित है।
निष्कर्ष
Shiv Parvati Vivah केवल एक धार्मिक घटना नहीं, बल्कि जीवन का गहरा संदेश है। यह सिखाता है कि कठिन तपस्या और दृढ़ विश्वास से असंभव को भी संभव किया जा सकता है। जो प्रेम और भक्ति के मार्ग पर चलता है, अंततः वह ईश्वर को पा लेता है।
महाशिवरात्रि हमें यही प्रेरणा देती है कि हम अपने जीवन में संयम, सत्य, प्रेम और निष्ठा को स्थान दें। जैसे पार्वती ने शिव को पाने के लिए तपस्या की और शिव ने उनके प्रेम को स्वीकार किया, वैसे ही हम भी भक्ति और श्रद्धा से जीवन को सम्पन्न और मंगलमय बना सकते हैं।