Netflix के The Royals पर गुस्सा: पूर्व राजपरिवारों का कहना, “हमें गलत दिखाया जा रहा है!” हाल ही में Netflix पर रिलीज हुई वेब सीरीज ‘द रॉयल्स’ को लेकर काफी बवाल मचा हुआ है। भारत के पूर्व राजघरानों के कई सदस्य इस सीरीज से खासे नाराज़ हैं। उनका कहना है कि इस सीरीज में उनके परिवारों और उनकी विरासत को तुच्छ तरीके से पेश किया गया है।
The Royals क्या है विवाद की जड़?
The Royals सीरीज एक काल्पनिक राजपरिवार ‘मोरपुर’ की कहानी बताती है। ये परिवार आर्थिक तंगी से जूझ रहा है और अपने पुराने महल को होटल में बदलने की कोशिश कर रहा है ताकि वो अपनी आर्थिक मुश्किलों से उबर सके। सीरीज में परिवार के सदस्यों के बीच झगड़े, रिश्तों की उलझनें और पुराने ठाठ-बाट को बनाए रखने की जद्दोजहद दिखाई गई है।
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Netflix का नया शो The Royals दर्शकों के बीच चर्चा में है, क्योंकि The Royals के डायरेक्टर ने Ishaan Khatter-Bhumi की chemistry पर प्रतिक्रिया दी, जिससे The Royals और भी सुर्खियों में आ गया।
पूर्व राजपरिवारों की आपत्ति क्या है?
पूर्व राजपरिवारों के सदस्यों का मानना है कि इस तरह की कहानियां उनकी वास्तविक छवि के बिल्कुल उलट हैं और उन्हें गलत तरीके से दिखाया जा रहा है:
- तुच्छ प्रस्तुति: उनका कहना है कि सीरीज में राजघरानों को ऐसे दिखाया गया है जैसे वे सिर्फ झगड़ालू, बर्बाद हो चुके और ज़िंदगी से पिछड़े हुए लोग हैं। जबकि हकीकत इससे बिल्कुल अलग है।
- वास्तविक योगदान को नज़रअंदाज़ करना: कई पूर्व शाही परिवारों के सदस्यों ने ज़ोर देकर कहा है कि आजादी के बाद उन्होंने खुद को नए तरीके से ढाला है। वे सफल उद्यमी हैं, होटल चलाते हैं, संग्रहालय संभालते हैं, स्कूल और अस्पताल चलाते हैं। वे भारत की समृद्ध लोक कलाओं, शिल्प परंपराओं और सांस्कृतिक विरासत को संभालने और बढ़ावा देने में अहम भूमिका निभा रहे हैं।
- नकारात्मक स्टीरियोटाइप: उनका आरोप है कि सीरीज उन पुराने और नकारात्मक स्टीरियोटाइप को ही दोहरा रही है जो राजाओं को फिजूलखर्ची करने वाले, विलासिता में डूबे और आलसी लोगों के तौर पर दिखाते हैं।
पूर्व राजपरिवारों के सदस्यों की आवाज़:
- संदूर की पूर्व महारानी यशोधरा घोरपड़े ने एनडीटीवी से बात करते हुए साफ कहा, “आज शाही परिवार सफलतापूर्वक व्यवसाय, स्कूल और अस्पताल चला रहे हैं। हम लोक कला और शिल्प परंपराओं को संरक्षित कर रहे हैं। मैं खुद कई सालों से स्कूल चला रही हूं।” उनके शब्दों में आज के राजपरिवारों की सक्रियता साफ झलकती है।
- गोवा के पूर्व मुख्यमंत्री प्रतापसिंह राणे की पत्नी विजयादेवी राणे ने भी इस सीरीज को खारिज करते हुए कहा, “हर कोई इतना बेकार नहीं था। उन्होंने (पूर्व शासकों ने) आज के विकास की नींव रखी। ज्यादातर शासकों ने स्कूल, अस्पताल और कॉलेज शुरू किए। मेरे पति 18 साल तक गोवा में सीएम रहे, वे एक सफल विधायक रहे हैं और मेरा बेटा राजनीति में है। हम एक सक्रिय परिवार हैं और हम राष्ट्र निर्माण में योगदान दे रहे हैं। यह पूरी तरह से बकवास है, हर कोई एक भ्रष्ट जीवन नहीं जी सकता है।”
- राधिका राजे गायकवाड़ ने इंस्टाग्राम पर एक पोस्ट करके सीरीज को “राजनीति से प्रेरित” बताया। उन्होंने लिखा, “स्वतंत्रता के बाद शुरू हुआ राजनीति से प्रेरित प्रचार, जिसमें व्हिस्की और फिजूलखर्ची में डूबे राजा के साथ शिफॉन और मोतियों में सजी रानियां शामिल हैं, आज भी हमें परिभाषित करता है।” महाराष्ट्र के फलटन परिवार (छत्रपति शिवाजी महाराज की पत्नी साईं बाई का वंश) ने भी उनके विचारों का समर्थन किया है।

सीरीज की कहानी क्या है?
The Royals एक काल्पनिक ड्रामा है जिसमें मुख्य किरदार भूमि पेडनेकर (सोफिया शेखर) और ईशान खट्टर (अविराज) निभा रहे हैं। कहानी की शुरुआत सोफिया की श्रीलंका के एक बीच पर दौड़ने से होती है, जहां वह अविराज से मिलती है। शुरू में दोनों एक-दूसरे की असली पहचान से अनजान रहते हैं। सीरीज मोरपुर परिवार के संघर्ष, उनके आपसी रिश्तों की जटिलताओं और उनके महल को बचाने की कोशिशों के इर्द-गिर्द घूमती है। सीरीज के कई दृश्य जयपुर में भी फिल्माए गए हैं। हालांकि, समीक्षकों का कहना है कि ईशान खट्टर के प्रतिभाशाली अभिनय का पूरा फायदा नहीं उठाया गया और कहानी काफी हद तक निराश करने वाली है।
क्या है दूसरा पक्ष?
हालांकि कई पूर्व राजपरिवार The Royals को लेकर नाराज़ हैं, लेकिन कुछ का मानना है कि The Royals पूरी तरह से काल्पनिक सीरीज़ है। उनका कहना है कि फिल्मों और सीरीज में अक्सर काल्पनिक कहानियां होती हैं और इसे किसी वास्तविक समूह या परिवार पर हमला नहीं माना जाना चाहिए।
अंतिम राय
Netflix की The Royals सीरीज ने काल्पनिक कहानी और ऐतिहासिक वास्तविकता के बीच के फर्क को लेकर एक बहस छेड़ दी है। पूर्व राजपरिवारों के सदस्य खुद को गलत तरीके से पेश किए जाने पर आहत हैं और अपनी वर्तमान सफलताओं और योगदान की तरफ ध्यान दिलाना चाहते हैं। वे चाहते हैं कि उनकी छवि सिर्फ पुराने ज़माने के स्टीरियोटाइप से न जुड़ी रहे। दूसरी ओर, कुछ लोग इसे सिर्फ मनोरंजन के लिए बनी काल्पनिक कहानी मानते हैं। यह विवाद इस बात को रेखांकित करता है कि कैसे ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर बनी फिक्शनल कहानियां वास्तविक समुदायों की भावनाओं को प्रभावित कर सकती हैं, खासकर तब जब वे उनकी वर्तमान पहचान और उपलब्धियों से मेल न खाती हों।
यह विवाद सिर्फ एक वेब सीरीज तक सीमित नहीं है। यह भारत के समृद्ध इतिहास, उसके बदलते सामाजिक ताने-बाने और आज के युग में अपनी जगह बनाने वाले पूर्व शाही परिवारों की चुनौतियों को समझने का एक मौका है। जब तक दोनों पक्षों की आवाज सुनी जाएगी और सम्मान दिया जाएगा, यह बहस जारी रहने वाली है।
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