श्रीराम, जिन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है, भारतीय संस्कृति और धर्म के महानायक हैं। वह रामचरितमानस और रामायण के प्रमुख नायक हैं, जिनकी जीवन कथा ने आदर्श जीवन, धर्म, कर्तव्य और मानव मूल्यों की सर्वोच्च मूरत पेश की है। आज भी Shree Ram के आदर्श व्यक्तित्व से हम जीवन के हर क्षेत्र में प्रेरणा ले सकते हैं।
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1. जन्म और कुल
अयोध्या के राजा दशरथ और रानी कौशल्या के बड़े पुत्र श्रीराम का अवतार त्रेतायुग में हुआ था। अयोध्या के इकलौते उत्तराधिकारी होने के कारण उन पर राजसिंहासन की परंपरागत जिम्मेवारी थी।
2. पालन-पोषण और शिक्षा
Ram का बचपन ब्राह्मण वशिष्ठ के आश्रम में व्यतीत हुआ जहाँ उन्होंने वेद, उपनिषद्, धनुर्विद्या व राज्यशास्त्र की शिक्षा पाई। बचपन से ही उनका चरित्र, धीरज और दया के गुण अद्वितीय थे।
3. स्वयंवर और विवाह
जनकपुर में सीता स्वयंवर का आयोजन हुआ, जहाँ बड़े-बड़े राजकुमार भी उत्सर्ग न कर सके। राम ने शिव से बने धनुष को तोड़कर सीता को अपना जीवनसाथी बनाया औरुणयुगीन आदर्श विवाहित जीवन का उदाहरण स्थापित किया।
4. वनवास और परीक्षा
पितृ-कृपा के लिए राम ने चौदह वर्ष का वनवास स्वीकारा। सीता और लव-कुश सहित वन में जीवन ने उन्हें क्षमाभाव, त्याग और कर्तव्यबोध का पाठ पढ़ाया।
5. रावण वध और धर्म संघर्ष
लंकापुरी के राक्षसराज रावण ने माता सीता का हरण किया। धर्म की स्थापना हेतु राम ने वानरसेना और भीष्म पुरी में वानर-राज सुग्रीव की मदद से रावण का वध किया। इस युद्ध ने अधर्म पर धर्म की विजय का प्रतीक बनकर इतिहास में अमर हो गया।
6. राज्याभिषेक और रामराज्य
अयोध्या लौटकर राम ने राजतिलक किया और “रामराज्य” की अवधारणा प्रस्तुत की—जहाँ जनता सुरक्षित, न्यायसंगत शासन और समृद्धि का आनंद ले। उनका शासन आदर्श मानदंड बन गया।

Shree Ram के आदर्श और शिक्षा
| आदर्श | अर्थ |
|---|---|
| सत्यनिष्ठा | सत्य के पथ पर अडिग रहना |
| कर्तव्यपरायणता | धर्म एवं दायित्व का निष्ठापूर्वक पालन |
| क्षमाशीलता | परोपकार और क्षमा का भाव |
| मर्यादा एवं शिष्टाचार | सामाजिक नियमों और मर्यादाओं का सम्मान |
| लोककल्याण | जनहित के लिए निर्णय लेने और प्रयास करने की भावना |
श्रीराम का आधुनिक जीवन में महत्व
आज के सामाजिक और व्यक्तिगत जीवन में Shree Ram के आदर्श उतने ही प्रासंगिक हैं:
- निर्णय क्षमता: जीवन में कठिन निर्णय आ जाएँ, तो रामचरितमानस के प्रसंगों से मार्गदर्शन मिलता है।
- न्यायप्रियता: रामराज्य की अवधारणा हमें सशक्त और न्यायसंगत समाज की कल्पना सिखाती है।
- त्याग-तपस्या: व्यक्तिगत और सामूहिक जीवन में यदि त्याग व तपस्या की भावना हो, तो लक्ष्यों की प्राप्ति संभव है।
श्रीराम की जीवनगाथा हमें सिखाती है कि धर्म, सत्य, कर्तव्य और परोपकार यात्रायें हैं, जिनके बिना जीवन अधूरा है। आज हम भी उनके आदर्शों को आत्मसात कर सुख, शांति और सामंजस्यपूर्ण समाज के निर्माण में योगदान दे सकते हैं।
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