Mohak Mangal vs ANI: करोड़ों की डिमांड, कॉपीराइट या डिजिटल वसूली?

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YouTube इंडिया में उभरा नया विवाद: ANI और कॉपीराइट स्ट्राइक का खेल

हाल ही में प्रसिद्ध यूट्यूबर Mohak Mangal ने एक गंभीर मुद्दा उजागर किया है जो भारत के डिजिटल स्पेस में फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन और फेयर यूज़ को लेकर बड़े सवाल खड़े करता है। आरोप है कि समाचार एजेंसी Asian News International (ANI) द्वारा जानबूझकर यूट्यूब क्रिएटर्स को टारगेट किया जा रहा है, और उनसे वीडियो हटवाने के नाम पर लाखों रुपये की मांग की जा रही है।

क्या ANI कर रही है कॉपीराइट का दुरुपयोग?

भारत में कई यूट्यूब क्रिएटर्स जो समाचार, एजुकेशन या सामाजिक कमेंट्री से जुड़ी सामग्री बनाते हैं, उन्होंने आरोप लगाया है कि ANI उनके वीडियो पर कॉपीराइट स्ट्राइक लगा रही है। यह स्ट्राइक्स आमतौर पर उन वीडियो पर होती हैं जिनमें ANI के छोटे फुटेज का उपयोग किया गया होता है—even under fair use.

सबसे चौंकाने वाली बात? इन स्ट्राइक्स को हटाने के बदले में कथित तौर पर लाखों रुपये की मांग की जा रही है। अगर कोई क्रिएटर पेमेंट नहीं करता, तो उसके चैनल पर तीन स्ट्राइक्स लग सकती हैं और चैनल परमानेंटली डिलीट हो सकता है

फेयर यूज़ बनाम लीगल बुलीइंग

Fair Use एक ऐसा कानूनी सिद्धांत है जो एजुकेशनल, कमेंट्री, समीक्षा या रिपोर्टिंग के लिए सीमित रूप से कॉपीराइटेड सामग्री के उपयोग की अनुमति देता है। भारत में इसके नियम थोड़े अस्पष्ट हैं, और ऐसा लगता है कि ANI इस ग्रे ज़ोन का फायदा उठा रही है।

यह स्थिति यूट्यूब इंडिया में डिजिटल सेंसरशिप का रूप लेती जा रही है, जहाँ छोटे क्रिएटर्स पर दबाव बनाया जा रहा है कि वे बड़े मीडिया हाउसेज़ की सामग्री इस्तेमाल न करें—even for critical or educational purposes.

YouTube की जिम्मेदारी और चुप्पी

YouTube के कॉपीराइट सिस्टम की खामियां भी इस विवाद में उजागर हुई हैं। बड़ी मीडिया कंपनियां आसानी से कॉपीराइट क्लेम कर सकती हैं, लेकिन छोटे क्रिएटर्स को अपील करने में समय और कठिनाई का सामना करना पड़ता है

कई मामलों में स्ट्राइक हटवाने के लिए प्राइवेट नेगोशिएशन का सहारा लिया जाता है, जहाँ कथित तौर पर पैसा देने की डिमांड होती है। यह यूट्यूब की निष्पक्षता और पारदर्शिता पर भी सवाल उठाता है।

डिजिटल अभिव्यक्ति पर खतरा

अगर क्रिएटर्स को हर बार डर लगेगा कि किसी समाचार फुटेज का उपयोग करने पर उनका चैनल बंद हो सकता है, तो वे महत्वपूर्ण, तथ्य-आधारित विश्लेषण से दूर हो जाएंगे। यह केवल क्रिएटर इकोनॉमी को नहीं, बल्कि भारतीय लोकतंत्र में सूचना के अधिकार को भी चोट पहुँचाता है।

यह सिर्फ यूट्यूब का मामला नहीं है, बल्कि डिजिटल राइट्स का बड़ा संकट है।

कानूनी विशेषज्ञों की राय

Internet Freedom Foundation (IFF) जैसे संगठनों ने ANI के इस कथित व्यवहार की जांच की मांग की है। कई कानूनी जानकार मानते हैं कि कॉपीराइट कानून का इस प्रकार दुरुपयोग करना ‘कॉपीराइट ट्रोलिंग’ कहलाता है, जो नैतिक और कानूनी दोनों रूप से गलत है।

भारत में सूचना के अधिकार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता संविधान द्वारा संरक्षित है। अगर ANI जैसा संस्थान इन अधिकारों का दमन करता है, तो इसके खिलाफ कठोर कार्रवाई आवश्यक है

एकतरफा मीडिया बनाम स्वतंत्र क्रिएटर्स

आज के समय में जब पारंपरिक मीडिया संस्थानों की विश्वसनीयता पर सवाल उठ रहे हैं, डिजिटल क्रिएटर्स ही सच्चाई सामने लाने का माध्यम बन चुके हैं। अगर उन्हें ही चुप कराया जा रहा है, तो यह लोकतंत्र की आवाज़ को कुचलने जैसा है।

ANI जैसे संस्थानों को चाहिए कि वे पारदर्शिता बरतें, और अगर वे गलत नहीं हैं तो सामने आकर स्थिति स्पष्ट करें।

हमें जरूरत है:

  • ट्रांसपेरेंसी और जवाबदेही की
  • एक स्पष्ट और मजबूत Fair Use कानून की
  • यूट्यूब की सख्त नीति उन संस्थानों के खिलाफ जो कॉपीराइट का दुरुपयोग करते हैं
  • क्रिएटर्स की कानूनी और सामाजिक सुरक्षा की

क्या सरकार को इस मामले में हस्तक्षेप करना चाहिए?

बिलकुल। जब बात अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और डिजिटल अधिकारों की आती है, तो सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि वह स्थिति की जांच करे और न्याय सुनिश्चित करे। यदि ANI जैसे प्रतिष्ठान कॉपीराइट कानूनों का उपयोग कर डिजिटल सेंसरशिप का साधन बना रहे हैं, तो यह लोकतांत्रिक मूल्यों पर सीधा हमला है।

सरकार को चाहिए कि:

  • डिजिटल मीडिया क्रिएटर्स के लिए फेयर यूज़ के स्पष्ट दिशा-निर्देश बनाए।
  • मीडिया संस्थानों द्वारा गलत कॉपीराइट स्ट्राइक करने पर जुर्माने का प्रावधान लाए।
  • YouTube और अन्य सोशल प्लेटफॉर्म्स को निष्पक्ष शिकायत निवारण तंत्र अपनाने के लिए बाध्य करे।

ANI की चुप्पी: क्या ये स्वीकारोक्ति है?

अब तक ANI की ओर से इस गंभीर आरोप पर कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है। उनकी चुप्पी कई सवालों को जन्म देती है। अगर उनका पक्ष सही है, तो उन्हें सामने आकर स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए। और यदि आरोप सही हैं, तो यह भारतीय मीडिया के लिए अत्यंत शर्मनाक स्थिति है।

मीडिया को जनता की सेवा करनी चाहिए, ना कि डर और दबाव का माध्यम बनना चाहिए।

क्रिएटर्स को क्या करना चाहिए?

  1. अपनी वीडियो में उचित डिस्क्लेमर और क्रेडिट देना शुरू करें।
  2. अगर आप फेयर यूज़ के अंतर्गत किसी न्यूज़ फुटेज का प्रयोग कर रहे हैं, तो उसका स्पष्ट विश्लेषण या क्रिटिकल कंटेंट शामिल करें।
  3. कॉपीराइट स्ट्राइक आने की स्थिति में कानूनी सहायता लें और YouTube की अपील प्रक्रिया का उपयोग करें।
  4. क्रिएटर समुदाय में एकजुटता बनाएं—एक साथ आवाज़ उठाना ही इस अन्याय के खिलाफ सबसे बड़ा हथियार है।

आखिर सवाल यह है: ANI को डर किस बात का है?

जब क्रिएटर्स केवल समाचार की सच्चाई दिखा रहे हैं, और जब वे किसी गलत सूचना को उजागर कर रहे हैं—तो ANI या किसी भी मीडिया हाउस को वास्तविकता से डर क्यों लग रहा है? अगर कोई संस्थान पारदर्शी है, तो उसे आलोचना से घबराना नहीं चाहिए।

ये स्कैम नहीं तो और क्या है, जब तथ्यों पर आधारित कंटेंट को दबाने के लिए कानून का सहारा लेकर आर्थिक वसूली की जाए?

हमारी अपील: सच की लड़ाई में साथ आएं

यह लेख केवल ANI के खिलाफ नहीं है—यह उस पूरे सिस्टम के खिलाफ है जो डिजिटल स्वतंत्रता को खत्म करने की कोशिश कर रहा है। अगर आज हम चुप रहे, तो कल हमारी आवाज भी खामोश कर दी जाएगी।

निष्कर्ष: एक स्वतंत्र डिजिटल भारत के लिए आवाज़ उठाएं

भारत का यूट्यूब इकोसिस्टम विश्व के सबसे बड़े क्रिएटिव प्लेटफॉर्म्स में से एक है। इसे ऐसे ही दबाया नहीं जा सकता। कॉपीराइट का उद्देश्य रचनात्मकता की सुरक्षा है—ना कि इसका गला घोंटना।

क्रिएटर्स की आवाज़ दबाने की कोशिशों के खिलाफ खड़े हों। सच, तर्क और फेयर यूज़ के अधिकार की रक्षा करें।

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